एक आम चाय वाला जो बन गया मेहनत से साहित्यकार
मजबूरियाँ इंसान से क्या-क्या नहीं करवाती| लोग पेट पालने के लिए अपने शौक को मारकर रोज़ी-रोटी की तलाश में निकल जाते हैं| लेकिन, इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जो हालात के आगे अपने घुटने नहीं टेकते हैं और अपने शौक को ज़िंदा रखते हैं, परिस्थितियों का डटकर सामना करते हैं| आज हम बताने जा रहे हैं ऐसे ही एक शख़्स की कहानी जिसे देखकर आपको लगेगा कि ये एक आम चाय-वाला है, लेकिन इस चाय वाले के पास असल में 45 सालों का किताब लिखने का अनुभव है|
Laxman Rao, अमरावती के एक छोटे से गाँव ताड़ेगांव के रहने वाले हैं| पढ़ाई के लिए Rao अमरावती शहर आए, जहाँ उन्होनें 2 सालों तक पढ़ाई कर अपनी 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की| आज वो एक साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं| साथ ही उन्हें एक चाय-वाला भी कहा जाता है, लेकिन कभी-कभी लोग उन्हें साहित्यकार बनने के बाद भी चाय बेचते देख उनका मज़ाक भी बनाते हैं|
Laxman Rao की माने तो वो दिल्ली में चाय बेचने नहीं आए थे| जब वो 8वीं क्लास में थे, तब वो गुलशन नंदा जी की किताबें पढ़ा करते थे| गुलशन नंदा जी एक बहुत बड़े उपन्यासकार थे और उन्हीं की किताबें पढ़कर Laxman को प्रेरणा मिली कि वो भी एक दिन गुलशन नंदा जी की तरह बनेंगे|
एक बार उनके गाँव का एक लड़का रामदास, पानी में डूबकर मर गया था| उसपर Laxman ने उपन्यास ‘रामदास‘ लिखा था और दूसरा उपन्यास उन्होनें ‘नयी दुनिया की नयी कहानी‘ लिखा था| ये दो किताबें लेकर जब वो प्रकाशन के पास गये, तो कोई उनकी किताबें छापने को तैयार नहीं हुआ| एक प्रकाशक ने तो उन्हें फटकार भी लगाई| लेकिन इस बात ने भी उन्हें नहीं तोड़ा, बल्कि उन्हें इस बात से और हिम्मत मिली और उन्होनें खुद अपने पैसों से किताबें छापना शुरू कर दिया| एक-दो साल बाद लोग उन्हें जानने लग गये कि एक पानवाला किताबें लिखता है और 1981 में उनके बारे में टाइम्स-ऑफ-इंडिया ने एक आर्टिकल छापा, जो कि उनकी ज़िंदगी का सबसे ख़ास आर्टिकल था| Laxman की माने तो उस वक़्त उनका वो आर्टिकल पढ़कर इंद्रा गाँधी के ऑफीस में भी उनकी चर्चा हुई थी|
Laxman Rao ने 37 साल की उम्र में 12वीं पास की, 50 साल की उम्र में उन्होनें यूनिवर्सिटी से बीए किया और 63 साल की उम्र में उन्होनें इग्नू से एमए किया| अभी वो 66 साल के हैं| उनका कहना है कि आज वो किताबे बेचते हैं तो लोगों को आश्चर्य होता है, कुछ लोग कमियाँ भी ढूँढते हैं कि आख़िर वो इतना पढ़-लिखकर किताबें क्यू बेच रहे हैं| लेकिन Laxman Rao का पैशन उन्हें इस काम को करने के लिए प्रेरित करता है और उनका कहना है कि उन्हें ये ही करना है, इसलिए वो ये काम करते आ रहे हैं|
उन्होनें अभी तक 25 किताबें लिखी हैं| 16-17 किताबें उनकी पब्लिश भी हो चुकी हैं और 8-10 किताबें उनकी रिप्रिंट भी हो चुकी हैं| आज भी वो हर सुबह साइकल पर, स्कूलों में अपनी किताबें बेचने जाते हैं|
एक चाय-वाला, जिसकी मौजूदगी ने इंद्रा गाँधी तक को प्रभावित किया, आज भी विश्व दिगंबर मार्ग पर एक छोटी सी दुकान लगाकर चाय के साथ अपना हुनर बेच रहा है|
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