Deepchand Prakhyat हैं कारगिल, कश्मीर और असल ज़िंदगी के hero
सेना का जीवन किसी तपस्या से कम नहीं है|एक सच्चा सेनिक अपना घर-बार, परिवार और दोस्त-यारों से दूर रहकर जिस निष्ठा और समर्पण के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है, उसकी दूसरी मिसाल खोजने से भी नहीं मिलती| लेकिन इसके बावजूद उनके जीवन के बारे में, उनकी तकलीफ़ों, झंझावतों और दुश्वारियों के बारे में बहुत कम लिखा पढ़ा गया है|
Deepchand Prakhyat, Haryana के Hisar ज़िले में पेदा हुए और अपने सैन्य-प्रशिक्षण के लिए Maharashtra आ गये| उन्होनें अपनी सैन्य यात्रा 1989 में शुरू की और सैन्य पदक मिलने के बाद उनकी तेनाती Kashmir में General G.K. Mehendiratta की कमान में हुई| उन्होनें Kargil युद्ध में अपनी सेवायें देश को दीं और साथ ही साथ Kashmir के लश्कर में दुश्मनों के विपरीत खड़े रहे|
Deepchand Prakhyat ने मराठा योधा की ज़िंदगी जि और देश की सेवा करते हुए उन्होनें अपने दोनों पैर और एक बाज़ू खो दिया| अपने शरीर का कोई भी अंग खो देना किसी भी सैनिक के लिए बहुत दुख भरी कहानी होता है| उन्होनें लड़ाइयों में असाधारण काम किए और मृत्यु के समीप के अनुभव लिए| दुश्मन, ज़िंदगी और किस्मत से लड़ने के दृढ़ संकल्प की इस कहानी को सुन, आज भी हर कोई दंग रह जाता है|
स्थिति थमने के बाद वह लोग सिर्फ़ अपने समान की पैकिंग की प्रक्रिया में थे कि एक इंजन चालू नहीं हुआ और तीन लोगों को घायल करता हुआ एक विस्फोट हुआ| उन तीन लोगों में एक था दीपचंद|
General Mehendiratta उस वक़्त हैरान रह गये कि जो सैनिक इतनी बहादुरि से Kargil और Kashmir में मौत को मात देकर आए वो इस तरह घायल होंगे| उन लोगों का हाल इतना बुरा था की डॉक्टर ने भी उनके बचने की उम्मीद ना के बराबर बता दी थी| लेकिन General चाहते थे की उनके जवान पुनर्जीवित हो जाए, पर डॉक्टरों का कहना था का Deepchand का बहुत खून बह चुका है, उनके दोनों पैर और एक हाथ काटना पड़ेगा| लेकिन, तब भी कोई उम्मीद नहीं थी की दीपचंद बचेंगे| पर भगवान तो कुछ और ही चाहता था और इसलिए इस कहानी को लोगों के सामने प्रेरणा बनाने के लिए उसने उसे मौत के मूह से बचा लिया|
Deepchand ने बहादुरी के साथ एक mental-image को बना दिया कि अगर life कभी कोई बुरा दिन दिखाए तो हार मानने की बजाए उससे लड़ना चाहिए|
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