Sharad Patel ला रहे हैं समाज में एक अनोखा और ज़रूरी बदलाव
सड़क पर जब हमसे कोई भीख मांगता है तो तरस खाकर अक्सर हम उसे कुछ पैसे थमा देते हैं। लेकिन करीब छह साल पहले हरदोई के Sharad Patel के सामने जब 50 साल के एक भिखारी ने हाथ फैलाया तो उन्हें जैसे जिंदगी का मकसद मिल गया। दो दिन से भूखे उस भिखारी ने कुछ खाने के लिए 10 रुपये मांगे तो शरद ने उसे 20 रुपये की पूड़ी-कचौड़ी खिला दी। शरद घर लौट आए, लेकिन उनके मन में उस भिखारी का चेहरा घूमता रहा। उनके मन में विचार आया कि अगर भिखारी को एक कटोरा चावल खाने को दिया जाए तो उसकी एक पहर की भूख मिटेगी, लेकिन अगर एक कटोरा चावल पैदा करना सिखा दें तो वह हमेशा के लिए आत्मनिर्भर बन जाएगा। बस यही छोटा-सा आइडिया पटेल के जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया। वह भिखारियों को रोजगार पर लगाने की मुहिम में जुट गए। तब से अब तक वह सवा सौ से ज्यादा भिखारियों को आत्मनिर्भर बना चुके हैं और यह मुहिम जारी है।
Sharad Patel ने पहले भिखारियों का सर्वे किया। दुबग्गा बसंत कुंज योजना व डालीगंज स्थित मन कामेश्वर उपवन के आसपास 256 बाल भिखारी मिले। दोनों स्थानों पर उन्होंने शिक्षण केंद्र खोला और वहां बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। वे यहां से बच्चों को बेसिक शिक्षा देने के बाद उनका सरकारी स्कूलों में दाखिला भी कराते हैं। उनकी पाठशाला में बच्चों को तीन दिन किताबी कोर्स पढ़ाया जाता है और दो दिन खेलकूद व कल्चरल एक्टिविटी कराई जाती है। शनिवार को बाल संसद कराते हैं। सेंटर पर ही दस-दस बच्चों का ग्रुप बनाकर किसी मुद्दे पर बहस कराते हैं। ताकि उनकी कम्युनिकेशन स्किल डेवलप हो सके।
इस तरह अब तक Sharad Patel की मेहनत से 129 भिखारी भीख मांगना छोड़ चुके हैं। इनमें से 55 वयस्क भिखारी छोटा-मोटा रोजगार कर रहे हैं। इनमें से 74 अवयस्क भिखारियों को लखनऊ के ही दुबग्गा इलाके में ‘बदलाव पाठशाला’ में पढ़ाया जा रहा है ताकि वे बेहतर नागरिक बन सके।
बड़ी बात ये है कि Sharad और उनके साथियों ने किसी को भी जबरदस्ती भीख मांगना नहीं छुड़वाया। भिखारी भीख मांगना छोड़े, इसके लिए बिहेवियरल थेरपी की मदद ली गई। थेरपी ने भिखारियों का नजरिया बदला, उनमें काम करने की इच्छाशक्ति पैदा की। ज्यादातर भिखारी नशे के आदी थे। अपना खून बेचकर नशा करते थे। नशा छुड़वाने के लिए इनकी काउंसलिंग की गई। जब ये भिखारी रोजगार में लगे और पैसा कमाने लगे तो एक और दिक्कत सामने आई। चूंकि इनके पास रहने और सोने का कोई ठिकाना नहीं था इसलिए वे कहीं भी सो जाते थे। ऐसे में रात में चोर इनका पैसा और सामान चुरा लेते थे। इस के लिए Sharad Patel को लंबा संघर्ष करना पड़ा तब जाकर अस्थायी शेल्टर होम की व्यवस्था हो पाई।
अब Sharad ज्यादातर समय शेल्टर होम पर भिखारियों के साथ रहते और सोते भी हैं ताकि उनकी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझ सकें।
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