हौसलों को पंख बना, Mitali ने पूरा किया बचपन का सपना

हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा’ की सच्ची मिसाल हैं पटना विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग की स्टूडेंट Mitali और सर्जिकल बेल्ट बनाकर परिवार की परवरिश करने वाली उनकी माँ चंचला देवी। बेटी ने अफ्रीका महादेश की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो (तंजानिया) पर तिरंगा फहराया तो मां के आंसू छलक पड़े। उन्होंने बताया कि वो 10-10 रुपये जमा कर अफ्रीका गई है। पैसा जमा न हो पाने पर दो लाख रुपये का कर्ज भी लिया है। यहां तक भगवान ने पहुंचाया है तो आगे भी वही मालिक हैं। वहीं बेटी के शब्दों में उसका संघर्ष मां के आगे बहुत छोटा है।

बिहार के नालंदा जिले के कतरीसराय प्रखंड के मायापुर गांव की Mitali, पटना के बहादुरपुर में परिवार के साथ रहती है। मां चंचला देवी सर्जिकल बेल्‍ट बनाती हैं, जिसमें पिता मणीन्द्र प्रसाद सहयोग करते हैं। मणीन्‍द्र प्रसाद का कहना है कि खेती है, लेकिन कमाई इतनी कम है कि चंद माह की रोटी भी नसीब होना संभव नहीं। इस कारण पत्नी खादी ग्रामोद्योग से ट्रेनिंग लेने के बाद 2008 में सभी को लेकर पटना चली आईं। तीन बेटियों की पढ़ाई और उसके सभी खर्चे चंचला ने ही 12 से 18 घंटे काम कर पूरे किए।
चंचला देवी बताती हैं कि बड़ी बेटी ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (अहमदाबाद) से टेक्सटाइल डिजाइनिंग में कोर्स किया है। अभी सिलवासा में नौकरी करती है। छोटी बेटी मीनल 11वीं में पढ़ती है तो एक और बेटी Mitali ने किलिमंजारो चोटी को फतह कर देश का नाम दुनिया में ऊंचा किया है।

Mitali
Photo : livehindustan.com

Mitali ने बताया कि किलिमंजारो पर चढ़ाई की अनुमति मिलने के बाद जनवरी से ही वो चार लाख रुपये के जुगाड़ में जुट गई थी। राज्य सरकार, शिक्षा विभाग, कला-संस्कृति व युवा विभाग, विश्वविद्यालय प्रशासन सहित दर्जनों कंपनियों के पास पैसे के लिए गुहार लगाई। लेकिन सब जगह से निराशा ही हाथ लगी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने हर मंच पर मेरी सफलता का ढोल पीटा, लेकिन अभी तक एक रुपये की सहायता नहीं मिली। 35 हजार रुपये देने का आश्वासन कुलपति ने दिया है।

Mitali ने बताया कि संघर्ष के इस दौर में कुछ मददगार भी मिले, जिन्होंने हौसला टूटने नहीं दिया। विश्वविद्यालय के खेल सचिव प्रो. अनिल कुमार ने 11 हजार रुपये दिए। साथियों ने भी चंदा जमा किया। ‘खान क्लासेज’ के सर ने 30 हजार रुपये का सहयोग किया। बावजूद इसके, दो लाख रुपये का कर्ज लेना पड़ा। चोटी फतह करने के बाद अब इस कर्ज को खत्म करने के लिए एड़ी-चोटी एक करनी होगी| उनका कहना है कि कई प्रोफेसरों ने 500 रुपये दिए तो कुछ ने हंसी उड़ाते हुए 10 रुपये का नोट भी थमाया।

Mitali के शब्दों में संघर्ष तो अभी शुरू हुआ है। कराटे में ब्लैक बेल्ट मिताली का लक्ष्य सातों महादेशों की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराना है। पैसे की व्यवस्था हो गई तो मिताली जल्द ही माउंट एवरेस्ट पर भी तिरंगा फहराएगी।

Mitali ने बताया कि उसके गांव से राजगीर के पहाड़ नजदीक हैं। पहाड़ पर चढ़ाई बचपन का सपना है। लेकिन, घर की आर्थिक स्थिति इतना ज्यादा सोचने की इजाजत नहीं देती थी। पटना आने पर वो एनसीसी से जुड़ी। ‘सी’ सर्टिफिकेट प्राप्त किया। पर्वतारोहण की परीक्षा में बेहतर करने पर एनसीसी की ओर से पैरा जंपिंग टीम में चयन हुआ। उसके बाद सपने को पंख लगने शुरू हुए। पर्वतारोहण के बेसिक, एडवांस, मेथड ऑफ इंस्ट्रक्शन के साथ-साथ अल्पाइन कोर्स भी किया। अल्पाइन कोर्स में तंबू के साथ स्टूडेंट को किसी चोटी पर कई दिनों के लिए अकेले छोड़ दिया जाता है।

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Geeta Rana

I am a Content Writer by Hobby, A Blogger by profession, as well as Owner of Nekinindia.com.

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