Prabha Devi Semwal ने अपने दम पर सहेजी है उत्तराखंड की धरोहर
ये कहानी एक ऐसी जुनूनी महिला की है जिन्होनें अकेले अपने दम पर पहाड़ों की बंजर भूमि को हरे-भरे जंगलों में तब्दील करने का कठिन काम भी बखूबी कर दिखाया है। ये कहानी है Prabha Devi Semwal की जो सब सुख सुविधाएं छोड़कर बीते पचास बरसों से जंगलों को सहेजने में जी-जान से जुटी हुई है, लेकिन उन्हें वो पहचान अब तक नहीं मिली जिसकी वो हकदार हैं।
हिमालय जितना अडिग है, उतने ही अडिग यहां के निवासी भी हैं| जो हिमालयी सभ्यता के साथ आज भी खुद हिमालय के हिमायती बनकर रचे-बसे हैं| केदारघाटी के पसालत गांव में रहने वाली Prabha Devi Semwal ऐसी ही एक शख्सियत हैं जिन्होंने अपने हौंसलों से साबित किया है कि पहाड़ी महिलाएं भी हिमालय सी बुलंद और मजबूत हैं| प्रभा देवी सेमवाल हिमालय की उन अडिग हस्तियों का प्रतिनिधत्व करती हैं जो हिमालय को बचाने, उसे खूबसूरत बनाने और उसकी आभा को अविरल बनाने में जुटी हुई हैं| 66 साल की इस महिला का आज अपना खुद का जंगल है, जिसे इन्होंने खुद उगाया, पाला पोसा और सहेजा है| उम्र के इस पड़ाव में भी बुजुर्ग प्रभा देवी की दिनचर्या अपने खेत, जानवरो और पेड़ो के ही इर्द गिर्द घूमती है|
Prabha Devi का कहना है कि सालों पहले गांव में अवैध कटाई और भूस्खलन के कारण जंगल से रोजमर्रा की जिंदगी को मिलने वाले संसाधनो में कठिनाई आने लगी| सिमटते जंगल और कम होती हरियाली का असर न सिर्फ वहां रहने वाले लोगों पर पड़ने लगा बल्कि जानवरों के लिहाज से भी परिस्थितियां बिगड़ने लगीं| ऐसे में उन्होंने अपने रोजमर्रा के जीवन में जंगल की उपयोगिता को समझते हुए वनों को सहेजने का संकल्प लिया और अपने खेतों में फसल बोने की बजाए, कई पेड़ लगाकर इसकी शुरूआत की|
Prabha Devi ने दूर-राज स्थित अपने खेतों के समूह में जंगल उगाना शुरू किया| पहले अपने जानवरों के लिए घास उगाई और फिर धीरे-धीरे पेड़ों को उगाना शुरू किया| देखते ही देखते प्रभा देवी की मेहनत रंग लाने लगी और उनके खेत एक हरे-भरे जंगल में तब्दील हो गए|
आज उनके द्वारा उगाये गए जंगल में पेड़ो की संख्या पांच सौ से भी अधिक है| जिसमें अलग-अलग तरह के पेड़ है| प्रभा देवी ने इमारती लकड़ियों से लेकर जानवरों को घास में देने वाले पेड़ों समते रीठा, बांझ, बुरांस, दालचीनी और कई स्थानीय पेड़ों को लगाया है|
Prabha Devi Semwal के तीन बेटे और तीन बेटियां हैं| आज उनके बेटे-बेटियां देश-विदेश में अपने-अपने कामो में लगे हैं और अच्छी तरह सेटल हैं| लेकिन उनके कई बार बुलाने के बाद भी Prabha Devi ने कभी पहाड़ नहीं छोड़ा| उम्र के जिस पड़ाव में हर इंसान किसी अपने का सहारा चाहता है ताकि बाकी की जिंदगी सुकून से कट जाए, उस अवस्था में भी प्रभा देवी पर्यावरण के प्रति समर्पित हैं| यहां तक कि औलादों के साथ रहने की एक मां की चाहत भी कभी पहाड़ों और वनों के प्रति उनके प्रेम को कम नहीं कर पाई|
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