दिहाड़ी मजदूर से एथलीट बनने की Murali Kumar Gavit की कहानी
गुजरात के डांग जिले में सड़क निर्माण में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले आदिवासी एथलीट Murali Kumar Gavit ने पुरुषों के 10000 मीटर दौड़ को अपने नाम करने के साथ एशियाई चैंपियनशिप के लिए भी क्वालीफाई किया| कुमार ने इस टूर्नामेंट के पहले दिन पुरुषों की 5000 मीटर दौड़ को भी अपने नाम किया था| उन्होंने रविवार को 29 मिनट 21.99 सेकंड के समय के साथ दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया| उनका ये समय एशियाई चैंपियनशिप के क्वालिफिकेशन मार्क 29 मिनट 50 सेकेंड से काफी बेहतर रहा|
Murali Kumar ने बताया कि जब वो छोटे थे, तो उनके माता-पिता पूरे गाँव के मवेशियों को चराने जाया करते थे। दिन के अंत में, गांव वाले उन्हें खाना दिया करते थे। उन्हें आज भी याद है कि वो और उनका भाई एक बड़ा बर्तन लेकर गाँव में घुमा करते थे|
जो भी खाना बचता था, लोग उस बर्तन में डाल दिया करते थे| कुछ लोग बहुत कुछ देते और कुछ बहुत कम दिया करते थे| वही उन्हें खाना पड़ता था। जब वो उस बर्तन को ले जाते थे तो उन्हें बहुत छोटा महसूस होता था। आज भी, किसी दौड़ से पहले, वो उन दिनों को याद करते हैं। उन्हें पता है कि वो कहां से आये हैं। इसी से उन्हें वो सारी प्रेरणा मिलती है जो उन्हें चाहिए|
वास्तव में Murali Kumar के लिए दौड़ना ही गरीबी से बचने का एकमात्र रास्ता था| गावित ने लॉन्ग डिस्टेंस रेस में भाग लेने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने सुना था कि वो उनमें पैसा बना सकते हैं|
उन्होंने अहमदाबाद में एक मैराथन के बारे में सुना था जिसमें 6 लाख रुपये की पुरस्कार राशि थी। उनकी महत्वाकांक्षा उस मैराथन को जीतने की थी ताकि वो अपनी गरीबी को एक बार में मिटा सकें। इसलिए उन्होंने तय किया कि वो हर दिन 21 किलोमीटर दौड़ेंगे|
उन्होंने अपनी पहली दौड़ उसी साल, 2013 में होली के समय के आसपास एक गाँव उत्सव की दौड़ में लगाई।
उन्होंने उसमें हिस्सा लिया क्योंकि पहला पुरस्कार 2000 रुपये था। उनके पास जूते या चप्पल (सैंडल) भी नहीं थे। पहले दो किलोमीटर के अंदर, उनके पैरों के नीचे बड़े छाले बन गए थे। लेकिन उन्होंने खुद को दौड़ पूरी करने के लिए मजबूत किया ताकि उन्हें वो 2000 रुपये मिल सकें। इसके बाद ही उन्होंने अपने पहले जूते 300 रुपये में खरीदे थे।
इस वक़्त तक गावित छोटे-मोटे कम्पीटीशन्स जीतकर ही खुश थे क्यूंकि वो जानते थे कि अच्छा पैसा आर्मी में भर्ती हो जाने के बाद ही मिल सकता है| लेकिन उनका ये मानना तब तक ही था, जबतक उन्होंने गुजरात सरकार द्वारा आयोजित खेल महाकुम्भ के बारे में नहीं सुना था| इस खेल के प्राइज मनी ने एक बार फिर उनका ध्यान अपनी ओर खिंचा|
Murali Kumar उस रेस के साथ 5000 रुपये भी जीत गए और डिस्ट्रिक्ट-रेस में उनका सिलेक्शन हो गया| लेकिन जब उन्हें स्टेट सिलेक्शन ट्रायल के लिए बुलाया तो वो बाकी रनर्स को फुल किट में देखकर नर्वस हो गए| इसी के साथ उन्होंने अपने कदम रोक लिए और अगले साल अच्छी तैयारी के साथ आने का बहाना बना दिया|
इसके बाद Murali Kumar ने उसी शाम गाँव वापिस लौटकर होली में जीते हुए सबसे पहली रेस के जूतों के साथ और फिर उसके बाद नंगे-पाँव, डांग के पहाड़ों पर दौड़कर अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी|
उसके बाद उन्होंने एक रोड प्रोजेक्ट में 150 रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी के तौर पर मजदूर की नौकरी की और उन रुपयों से अपने लिए नए जूते खरीदे| उनके पास कोई ट्रेनर या कोच नहीं था और सड़कों का हाल भी गाँव में बहुत बुरा था| लेकिन उनके जूनून ने उन्हें कभी रुकने नहीं दिया और आख़िरकार उन्हें मौका मिला और वो स्टेट सिलेक्शन रेस जीत गए| इसके बाद गवित आगे बढ़ते रहे|
Murali Kumar Gavit का कहना है कि वो जानते हैं वो कहाँ से आये हैं| उन्होंने यहाँ तक पहुँचने का कभी नहीं सोचा था| वो कहते हैं कि अगर वो यहाँ तक आ सकते हैं तो इसका मतलब है कि वो अभी और आगे जा सकते हैं|
(हमसे जुड़े रहने के लिए आप हमें फेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं )