Vishweshwar Dutt Saklani जैसा पर्यावरण प्रेमी नहीं देखा होगा आपने
उत्तराखंड के टिहरी जिले में एक शख्स रहते थे, जिन्हें दुनिया ‘वृक्ष मानव’ (Tree Man)के नाम से जानती है। नाम है Vishweshwar Dutt Saklani| 96 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। बात 18 जनवरी, दिन शुक्रवार की है। उन्होंने अपने गांव सकलाना पट्टी में अंतिम सांसें ली।
Vishweshwar Dutt Saklani का जन्म 2 जून 1922 में हुआ था| 8 साल की छोटी सी उम्र से ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई आन्दोलनों में हिस्सा लिया| पेड़-पौधों से उन्हें बेहद प्यार था| अपने इसी नेक शौक की वजह से उन्होंने पौधारोपण को अपना लक्ष्य बना लिया था|
उनके बेटे संतोष स्वरूप सकलानी राज भवन में राज्यपाल के प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में तैनात हैं। उन्होंने सूत्रों को बताया कि उनके पिताजी ने करीब 10 साल पहले देखने की शक्ति खो दी थी। पौधे रोपने से धूल और कीचड़ आंखों में जाता था, जिससे उन्हें परेशानी होने लगी थी। छोटे बच्चे थे, तब से उन्होंने पौधे रोपना शुरू किया था| Vishweshwar Dutt Saklani अपने पीछे 4 बेटों और 5 बेटियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। कहा जाता है कि जब उनके भाई का निधन हुआ तो वो कई घंटे तक घर से गायब रहते थे। इस दौरान वो पूरा दिन पौधे लगाने में बिताते थे। यहां से उनके और वृक्षों के बीच एक अटूट रिश्ता शुरू हुआ था।
पौधरोपण की शुरुवात उन्होंने अपने इलाके से ही की| उनके गाँव सकलान में काफी कम पेड़ थे, इसलिए उन्होंने वहां बांज, बुरांश, सेमल, भीमल, देवदार, सहित कई किस्म के पेड़ लगाए| अपने अकेले के दम पर उन्होंने सिर्फ 1000 हेक्टेयर ज़मीन पर एक पूरा जंगल खड़ा कर दिया|
अनुमानित तौर पर Vishweshwar Dutt Saklani ने अपनी पूरी ज़िंदगी में 50 लाख से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए| उन्हें साल 1986 में राजीव गाँधी ने ‘इंद्रा प्रियदर्शनी पुरस्कार ‘ से भी नवाज़ा था|
वृक्षमानव सकलानी का सपना था कि प्रत्येक आदमी पेड़ों को अपने जीवन के तुल्य माने और उनकी रक्षा करे। उनका संदेश था कि जीवन के तीन महत्वपूर्ण मौकों जन्म, विवाह और मृत्यु पर एक पेड़ जरूर लगाएं।
Vishweshwar Dutt Saklani की पत्नी का नाम भगवती देवी था , उन्होंने भी इस नेक काम में उनका पूरा साथ दिया| एक रिपोर्ट के अनुसार पेड़ उनके लिए उनका परिवार, उनके माता-पिता, उनके दोस्त, उनकी दुनिया और यहाँ तक कि उनका सबकुछ थे| उन्होंने कभी दुनिया नहीं देखि, क्योंकि वो पेड़ों को ही अपनी दुनिया मानते थे| एक ओर जहाँ विकास, सड़कों, मॉलों आदि के नाम पर इंसान पेड़ काटते जा रहे हैं, वहीँ दत्त साहब जैसे पर्यावरण-प्रेमी अब बहुत कम रह गए हैं| उनका जाना सिर्फ लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत दुखद है|
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