औरत होकर मर्दों के लिए लड़ती हैं Deepika Narayan Bhardwaj
कहते हैं किसी भी दर्द का नडज़ा हम तब तक नहीं लगा सकते, जबतक कि वो दर्द हम खुद महसूस ना करें| साल 2011 में Deepika Narayan Bhardwaj के चचेरे भाई की शादी 3 महीने में ही टूट गयी और उनकी पत्नी ने अपने पति और उनके पूरे परिवार पर मारपीट करने और दहेज माँगने का झूठा आरोप लगाते हुए केस दर्ज़ करवा दिया| Deepika को भी इसका हिस्सा बनाया गया और उनपर नियमित तौर पर मार-पीट करने का आरोप लगाया गया| बड़ी तेज़ी से हुई इस बात से वो हैरान थी| यही वो वजह थी, जब उन्हें लगा कि न जाने कितने ऐसे आदमी होंगे जो दहेज़ उत्पीड़न के झूठे आरोपों का सामना कर रहे होंगे| महिलाओं को दहेज़ प्रताड़ना से बचाने के लिए 498ए का ब्लैकमेलिंग और पैसे की उगाही करने का हथियार के रूप में इस्तेमाल, उनके सामने था|
उन्होनें उस सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाने का फ़ैसला किया, लेकिन सिर्फ़ अपने परिवार के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी क्यूंकी उनका विश्वास है कि कहीं का भी अन्याय हर जगह न्याय के लिए ख़तरा है|
Deepika Narayan Bhardwaj कभी एक नामी कंपनी में बतौर सॉफ़्टवेयर इंजिनियर काम करती थीं| Journalism में दिलचस्पी पैदा होने के बाद वो कंप्यूटर की दुनिया को अलविदा कह एंकरिंग करने लगीं| समय के साथ इस फील्ड में भी उनका काम बदला और उन्होनें independent documentary producer के रूप में अपनी पहचान बनाई| उनकी पहली फिल्म गाँवों में काम करने वाले postal employees की परेशानियों पर based थी| उनकी पहली ही फिल्म को कई सारे अवॉर्ड्स मिले और वो अमेरिका के कई organisations के साथ films बनाने लगीं| Martyrs of Marriage उनकी पहली ऐसी फिल्म है, जिसकी रिसर्च से लेकर स्क्रिप्ट, प्रोडक्शन और निर्देशन तक सब कुछ उन्होनें किया है| ये फिल्म अंधे क़ानूनों से निर्दोषों को बचाने की अपील पर focus करती है|
जिस तरह महिलाओं की लड़ाई लड़ने के लिए महिला होना ज़रूरी नहीं है, उसी तरह मर्दों के लिए लड़ने के लिए मर्द होना ज़रूरी नहीं है| Deepika Narayan Bhardwaj महिला अत्याचारों की बात नहीं करती हैं क्यूंकी उनका मानना है कि उनकी बात करने वाले लाखों लोग हैं| उनका कहना है कि पुरषों के खिलाफ अत्याचार के मामलों को सिर्फ़ ये कहकर नहीं ठुकराया जा सकता कि ऐसे मामले बहुत कम हैं| पिछले कुछ सालों में कई हज़ार लोगों ने उनसे मदद माँगी है| उन्हें ये भी मालूम चला कि महिला हेल्पलाइन पर आने वाले 24% कॉल्स पुरषों के होते हैं| बलात्कार के झूठे मामलों में भी वो निर्दोष पुरषों के साथ खड़ी रहती हैं| वो चाहती हैं कि झूठे आरोपों की वजह से किसी निर्दोष की ज़िंदगी बर्बाद ना हो|
उनका कहना है कि उनके काम की कई educational institutions में चर्चा होती है| इंदौर के आइआइटी और आइआइएफटी जैसे institutions उन्हें debate के लिए invite करते रहते हैं| प्रताड़ना के दूसरे पहलू को सामने लाने के लिए लोग उनकी तारीफ़ बही करते हैं, तो कुछ उनपर महिला विरोधी होने का आरोप भी लगाते हैं| लेकिन Deepika का कहना है कि वो किसी के विरोध में नहीं बल्कि इंसानियत के लिए काम कर रही हैं| वो उस अंतर को भरने की कोशिश कर रही हैं, जिसको notice में लाने के लिए लोग हमेशा हिचकिचाते हैं|
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