Shakila Sheikh का कागज़ के थैले बनाने से कलाकार बनने का सफ़र
Shakila Sheikh का जन्म 48 साल पहले पश्चिम बंगाल के परगना ज़िले में हुआ था| अपने 6 भाई-बहनों में सबसे छोटी Shakila ने उस वक़्त चलना भी शुरू नहीं किया था, जब उनके पिता परिवार छोड़कर बांग्लादेश चले गये थे| घर चलाने के लिए उनकी माँ ने सब्ज़ी बेचना शुरू कर दिया| वो रोज़ाना 40km सफ़र तय करके कोलकाता सब्जी बेचने जाती थीं| कई बार जब माँ सब्जी बेच रही होती थीं, तो शकीला वहीं फुटपाथ पर सो जाती थी|
फिर एक दिन उनकी जिंदगी में एक टर्निंग पॉइंट आया| वहाँ हर रोज एक सोशियल वर्कर और पेंटर बलदेव राज पनेसर हर रोज़ सब्जियाँ खरीदने आते थे| ग़रीब बच्चों को चॉकलेट, अंडे, पेन्सिल, कॉपी-किताबें बाँटने के लिए वो जाने जाते थे| बंगाली में अंडे को डिंब कहते हैं, इसलिए बच्चे उन्हें डिंबबाबू बुलाते थे| एक दिन डिंबबाबू ने Shakila को भी चॉकलेट और अंडे देने की कोशिश की, लेकिन माँ की सीखाई बात को याद करके कि किसी अंजान से कुछ नहीं लेते, उन्होनें वो नहीं लिया| इस बात से पनेसर बाबू बहुत प्रभावित हुए|
एक दिन वो फिर वहाँ आए और उन्होनें शकीला की माँ से उन्हें स्कूल भेजने की बात कही और उनकी माँ मान गयी| हालांकि 7 साल गाँव में रहने के बाद, शहर में पढ़ाई करना उनके लिए आसान नहीं था| फिर भी बाबा के सपोर्ट से Shakila Sheikh ने थोड़ी-बहुत बांग्ला ज़रूर सिख ली|
एक तरफ जहाँ बाबा उनकी ज़िंदगी बेहतर बनाने की सोच रहे थे, उन्हीं दूसरी ओर उनकी माँ ने उन्हें बिना बताए 12 साल में Shakila की शादी करवा दी| उनकी शादी ऐसे इंसान से हुई, जिसकी अपनी बहुत समस्याएँ थीं|
शादी के कुछ साल बाद Shakila बाबा से मिलने गयी और उन्होनें बाबा से पूछा कि पैसे कमाने के लिए क्या वो कुछ काम कर सकती हैं| उन्होनें सलाह दी कि उन्हें कागज़ के ठेले बनाकर बेचने चाहिए| दरअसल, बाबा जानते थे कि बचपन में Shakila Sheikh की पेंटिंग बहुत अच्छी थी| उन्होनें Shakila को ड्रॉयिंग-बुक और पेन दिया और स्केच बनाने को कहा| उन्होनें स्केच बनाकर बाबा को दिखाए और बाबा ने दोनो स्केच को अख़बार में छपने के लिए भेज दिया| दोनों स्केच अख़बार में छपे और फिर एक दिन बाबा उन्हें एक exhibition में ले गये|
Shakila Sheikh के लिए वो दिन बहुत बड़ा दिन था| उन्होनें बड़ी बारीकी से एक-एक पेंटिंग को देखा| उस दिन बाबा ने उनके अंदर छुपे कलाकार को मान्यता दे दी| बाबा से मिले पेंटिंग के समान को जब उन्होनें अपने पति को दिखाया तो वो शकीला पर हंसने लगे| लेकिन किसी की परवाह किए बिना उन्होनें अपना काम जारी रखा और जल्द ही उनकी पहली पेंटिंग तैयार हो गयी| जब उन्होनें बाबा को वो पेंटिंग दिखाई तो वो बहुत खुश हुए और उन्होनें अपने दोस्तों को वो पेंटिंग दिखाई|
उन्हीं की मदद से, Shakila अपना काम मन लगाकर करने लगी और जल्द ही 1990 में उन्होनें अपना पहला collage तैयार कर के एक art gallery में exhibit किया| उस collage से Shakila Sheikh को 70,000 रुपये मिले, जो कि उनके लिए बहुत बड़ी बात थी| आज सेंटर ऑफ इंटरनॅशनल मॉडर्न आर्ट गैलरी की मदद से उनकी arts विदेशों में भी नाम कमा रही है|
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