Ranjita Singh ने साबित किया पद नहीं, काम बनाता है इंसान को बड़ा
देखा जाए तो किसी भी इंसान की पहचान उसके पद से की जाती है, लेकिन बिहार के मुंगेर ज़िले की पुलिस कांस्टेबल Ranjita Singh ने इसे ग़लत साबित कर दिया है| Ranjita ने अपनी मेहनत से 32 साल की उम्र में अपना कद(औहदा) अपने पद से भी बड़ा कर लिया है| असल में, बिहार के भोजीपुर ज़िले की रहने वाली Ranjita Singh, मुंगेर जैसे नक्सलिस्ट इलाक़े में कांस्टेबल पद पर पोस्ट हुई तो, किसी को नहीं पता था कि वो इस इलाक़े में एक बेमिसाल कहानी लिख डालेंगी|
भारतीय महिला फुटबॉल टीम की सदस्य रह चुकीं Ranjita Singh पिछले 10 साल से बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रही हैं| उनसे ट्रेनिंग लिए हुए खिलाड़ी, आज राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बना रहे हैं| Ranjita ने साल 2008 में मुंगेर डिस्ट्रिक्ट पुलिस फोर्स जाय्न किया था| उनके लिए ये जगह नई नहीं थी, क्योंकि पिता की नौकरी के दौरान वो कुछ समय तक उनके साथ यहां रह चुकी थीं|
Ranjita ने बताया कि जब वो छोटी थी तो गंगा किनारे छोटे बच्चों को लोगों का सामान ढोते हुए देखती थीं| इसके बदले मिले पैसों से वो बच्चे नशा किया करते थे| कांस्टेबल की नौकरी मिलने के बाद उन्होनें उन बच्चों को इकट्ठा किया और स्कूल में उनका अड्मिशन कराया| कुछ दिन बाद उन्होनें बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग देना शुरू किया और उसके बाद से ये काम लगातार जारी है|
ग़रीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों को equal opportunity avail कराने के लिए रंजीता ने उन्हें फुटबॉल की ट्रेनिंग देना शुरू किया और बाद में उन्हें पढ़ाई से भी जोड़ा| कूड़ा-कचरा बीनने वाले बच्चों को साथ लेकर Ranjita ने ‘चक दे फुटबॉल क्लब’ बनाया, जिसमें न सिर्फ बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दी, बल्कि सुबह-शाम एक पर्सनल टीचर की मदद से उन्हें ट्यूशन भी देना शुरू किया|
Ranjita Singh, इन दिनों भागलपुर के मिर्जाचौकी एरिया के 35 tribal बच्चों को ट्रेनिंग दे रही हैं| उन बच्चों को वो मुंगेर में अपने घर पर free residential तक उपलब्ध करा रही हैं| Ranjita बताती हैं कि मुंगेर के चार बच्चे पिछले साल International Football under-13 टीम में, जबकि दो बच्चे National Football Team under-19 में select हुए थे| सबसे बड़ी बात ये है कि रंजीता ने पुलिस में अपनी ड्यूटी करते हुए इन बच्चों को फुटबॉल की ट्रैनिंग दी है|
Ranjita ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग देती हैं, जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं| उनका कहना है कि इस काम के लिए उन्हें न तो किसी Industrial houses से कोई मदद मिली और न ही सरकार से| अपनी salary और समय-समय पर सीनियर पुलिस ऑफिसर्स की मदद से ही, वो बच्चों को ट्रेनिंग दे रही हैं| उन्हें sports material भी समय-समय पर पुलिस ऑफिसर्स ही avail कराते हैं|
Ranjita, ट्रेनिंग के दौरान अपने बच्चों को पूर्व राष्ट्रपति ए़ पी़ जे. अब्दुल कलाम की उस पंक्ति को जरूर याद कराती हैं, जिसमें उन्होंने ऊंचे सपने देखने की बात कही थी. पिछले दिनों राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने अपने मुंगेर दौरे के दौरान रंजीता से मुलाकात की थी| पुलिस महानिदेशक ने इस काम के लिए शाबाशी देते हुए Ranjita Singh को पांच हजार रुपये का prize दिया था| साथ ही उन्हें भागलपुर में Tilka Manjhi national award से भी सम्मानित किया गया|
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