स्कूल ड्रॉपआउट से स्टेट बोर्ड चीफ़ बनने का Shakuntala का सफ़र
देखो भैया प्यारे पाठक हमारे (महिला पाठिकाएँ बुरा ना मानें, अपनी सहूलियत के अनुसार बहन, सखी, सहेली वाला रिश्ता आप खुद ही जोड़ लें, हमें कोई आपत्ति नहीं है)। एक बात बताते हैं आप सभी लोगों को आज। वो बात ये है की कुछ बोल आज से काफी समय पहले बोल दिये गए हैं।
कितने समबोले गए और किसने बोला, इसके बारे में फिर कभी बात करेंगे। इन बोली गयी बातों के बारे में बहुत विशेष बात यह है कि ये सब बातें उस वक़्त में भी और आज के वक़्त में भी बराबर लागू होती हैं। इन्हीं में से कुछ बातों का ज़िक्र हमने हमारी पहले कि कुछ नेक कहानियों में भी किया हुआ है। मसलन, जहाँ चाह, वहाँ राह। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है बस। अगर ठीक-ठीक कहूँ तो ये भी, जहाँ चाह, वहाँ राह वाला मामला ही है।
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कहानी है Shakuntala Kale जी की। Shakuntala जी हैं महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एण्ड हाइयर सेकेंडरी एडुकेशन की चेयरपर्सन। अब इनका परिचय करवाने के लिए जो भूमिका हमने बांधी, आप सोच रहे होंगे की दोनों बातों का कनैक्शन क्या है। अभी बता देते हैं। दरअसल Shakuntala जी का विवाह सिर्फ 14 साल की छोटी से उम्र में ही कर दिया गया था। उनकी इस हालत का हवाला थोड़ा उनके हालातों को और ज्यादा समाज की सोच को दे सकते हैं। दरअसल,जब शकुंतला जी कक्षा 6 मे पढ़ती थी, उसी वक़्त उनके पिता अचानक गुज़र गए। उनकी गैरमौजूदगी में अब खेतों मे काम करने वाली उनकी माँ के पास कोई और चारा नहीं बचा था। एक तो ये वजह थी, और दूसरी ये कि एक लड़की पढ़-लिख कर क्या कर लेगी, ये सोच सबके ही मन में प्रबल थी।
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बहरहाल, Shakuntala जी का विवाह हुआ, मगर यहाँ एक अच्छी बात ये थी की उनके पति और ससुर पढ़ाई को लेकर सहायक दे। बस फिर दो बच्चों की माँ Shakuntala जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और एक के बाद डिग्री प्राप्त करती गयी। उन्होने प्राइमरी स्कूल मे भी पढ़ाया है और साथ ही अन्य परीक्षाओं कि तैयारी, रेडियो पर समाचार सुनकर करती रहीं, क्यूंकी उनके पास किताबों और टीवी के अलावा यही एक जरिया था। 1995 में उन्होने क्लास 1 अफसर की परीक्षा मे सफलता पायी और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए आज महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एण्ड हाइयर सेकेंडरी एडुकेशन की चेयरपर्सन हैं।
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