Ashish Dabral ने उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने का उठाया जिम्मा
उत्तराखंड से मजबूरी में पलायन का प्राथमिक कारण गरीबी, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा और कम रोजगार के अवसर हैं। हाल की सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, अल्मोड़ा और पौरी के लगभग 748 स्कूलों में कोई छात्र नहीं है। 2000 में राज्य के गठन के बाद से, इनमें से 200 से अधिक स्कूलों को अधिकतम मजबूर पलायन दर्ज किया है|
ऐसे महत्वपूर्ण समय में, कुछ युवा और वाइब्रेंट लोग अपने होमटाउन को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने के लिए एक दिशा में अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं। 34 साल के techie, Ashish Dabral, लगभग 720 किमी (दोनों तरफ) ट्रॅवेल करके गुड़गांव से उत्तराखंड अपने गाँव के बच्चों को पढ़ाने जाते हैं| वह न केवल शिक्षा को पुनर्जीवित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं, बल्कि बच्चों को आवश्यक कौशल, कला और शिल्प, और आधुनिक उपकरणों के साथ सशक्त बना रहे हैं|
Ashish Dabral का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के तिमली गांव में हुआ था। उनका मानना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं, आराम, नियमित रोजगार की कमी गाँव के लोगों को उस स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर कर रही है जहां वे पैदा हुए थे। इसके अलावा, जब शिक्षा की बात आती है, दुर्भाग्यवश, गांव के लोगों को सीमित विषयों और मार्गदर्शन के कारण पीड़ित होना पड़ता है|
Ashish Dabral कहते हैं कि माइक्रोसॉफ्ट में सर्टिफिकेट कोर्स प्राप्त करने के बाद, उन्होनें भारत और विदेश दोनों में विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम किया। बाद में, वह अंततः गुड़गांव में बस गये| गांव से दूर काम करते समय भी वो उस स्थान के बारे में सोचना बंद नहीं कर सके जहां वो बड़े हुए थे| 1882 में, वो उनके पर-दादाजी थे जिन्होंने ‘तिमली संस्कृत पाठशाला’ नामक एक स्कूल शुरू किया, जिसने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी में सैकड़ों छात्रों को शिक्षा प्रदान की। वो भी उस स्थान पर वापस जाना चाहते थे, जहाँ से वो जुड़े हुए हैं|
सरकार ने उनके दादा द्वारा शुरू की गई संस्था का नियंत्रण लिया और इसे जूनियर हाईस्कूल में बदल दिया। जब वो स्कूल में थे, तो 100 से ज़्यादा बच्चे वहां पढ़ रहे थे। हालांकि, तेजी से पलायन होने के साथ, मुश्किल से पांच से ज़्यादा बच्चे थे। इसलिए, उन्हें लगा कि उन्हें शिक्षा को पुनर्जीवित करने और अपने भाइयों को वापस लाने की जरूरत है|
अपनी कड़ी मेहनत के पैसे और दोस्तों और रिश्तेदारों से कुछ फाइनान्षियल मदद के साथ, Ashish Dabral ने 2009 में एक ट्रस्ट लॉन्च किया और जनवरी 2014 में उन्होंने Timli Vidyapeeth – कंप्यूटर शिक्षा के लिए एक तकनीकी केंद्र और प्राथमिक विद्यालय खोला। यह देवखेत में स्थित है, जो कि यूनिवर्सल गुरुकुल प्रौद्योगिकी केंद्र के छात्रों द्वारा संचालित है। दबराल ने बताया कि अब तक उन्होनें 70 से ज़्यादा बच्चों को प्राथमिक कंप्यूटर शिक्षा प्रदान की है जिन्होंने 12 महीने का प्रोग्राम पूरा किया था| अपनी टीम के साथ, उन्होनें एक सेवा केंद्र शुरू किया जहां छात्रों ने ऑनलाइन सेवाओं के माध्यम से पैन कार्ड, पासपोर्ट या खरीदारी जैसे दस्तावेजों का लाभ उठाने में ग्रामीण लोगों की मदद की|
Ashish Dabral ने मार्च 2015 में वंचित बच्चों के लिए स्कूल लॉन्च किया।बच्चों को पढ़ाने के लिए आशीष ISBT से बस पकड़ते हैं| उन्होंने बताया कि जिस गांव में वो पढ़ाने जाते हैं वहां गांव से लगभग 80 किलोमीटर के दायरे में कोई स्कूल नहीं है| यही वजह है कि लगभग 23 गांव के 36 बच्चे उनके स्कूल में पढ़ रहे हैं| स्कूल जाने के लिए बच्चे हर दिन 4 से 5 किलोमीटर का सफर करते हैं|
वह गुरुवार की रात ISBT से बस पकड़ते हैं और ऋषिकेश पहुंचते हैं| यहां उनका परिवार रहता है| सुबह के ब्रेकफास्ट करने के बाद वह गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए निकल जाते हैं| बता दें, गुड़गाव से उत्तराखंड की दूरी 370.4 किलोमीटर है और 10 घंटे का समय लगता है|
वर्तमान में, 40 से 50 छात्रों को तीन शिक्षकों के मार्गदर्शन से इस पहल से फायदा हो रहा है, जो शिक्षण के लिए अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए सभी बाधाओं से लड़ते हैं। Ashish ने कहा कि 2016 में, उनके करेंट एंप्लायर ब्रिटिश टेलीकॉम ने उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को डिजिटल कौशल सिखाने की पहल के लिए 50,000 रुपये दिए। उन्होनें स्कूल में चार कक्षाओं को बनाने के लिए उन पैसों का इस्तेमाल किया|
Ashish Dabral इस ऑर्गनाइज़ेशन को अपने पर-दादा की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए शुरू करना चाहते थे, जो कि उत्तराखंड (पूर्व में उत्तर प्रदेश) में शिक्षक थे। लोगों को सशक्त बनाने की ज़रूरत थी। उन्होनें इस मिशन में अधिक से अधिक लोगों को शामिल किया क्योंकि वो कभी इसे ‘वन मैन शो’ नहीं बनाना चाहते थे| Dabral की टीम गांव के युवाओं के लिए स्किल डेवेलपमेंट वर्कशॉप्स की व्यवस्था करते हैं ताकि वे अपनी आजीविका कमा सकें।
Ashish ने कहा कि वो सभी को वॉलंटरी आक्टिविटीस के लिए कुछ समय निकालने का अनुरोध करना चाहते हैं| उन्होनें कहा कि हमेशा अपने दिल की सुनो क्योंकि ज़िंदगी हमें जीने का एक और मौका नहीं देती, जिस तरह से हम इसे जीना चाहते हैं। उन्होनें कहा कि हमें विरासत और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए और उसे हमारी अगली पीढ़ी तक पहुँचाना चाहिए ताकि भविष्य में हमारी पहचान बनी रहे|
हम Ashish Dabral की इच्छा और तिमली में शिक्षा लाने के उनके प्रयासों की सराहना करते हैं, जिन्होंने निश्चित रूप से कई लोगों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है|
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