स्कूल के बच्चों के लिए 2 टीचर्स Nooruddin G M और Naik बने driver

2009-10 में पनेमांगलुरु का Kannada-medium Darul Islam Aided Higher Primary School बंद होने की कगार में था| कई स्टूडेंट्स ने english medium स्कूलों में अड्मिशन लेने या दूसरे कारणों से घर पर रहने की वज़ह से स्कूल आना बंद कर दिया था|
फिज़िकल एजुकेशन टीचर Radhakrishna Naik और असिस्टेंट टीचर Nooruddin G M ने काफ़ी धैर्य के साथ फिर से स्टीयरिंग व्हील को पकड़ने का फैसला किया|

दोनों ने स्टूडेंट्स को घर से लाने और घर तक पहुँचाने का फ़ैसला किया, ताकि वो स्कूल miss ना करें| उन्होंने पैसे जमा किए और Nooruddin G M ने एक Ambassador ख़रीदी, जबकि Naik ने एक Maruti Omni ख़रीदी| ये लोग अब सुबह और शाम कई चक्कर लगाते हैं और बच्चों के माता-पिता से बातचीत कर के उन्हें उनकी सुरक्षा का भरोसा भी देते हैं|
इस आइडिया ने काम किया और स्कूल में अब क्लास 1 से 7 तक कुल 185 स्टूडेंट्स हैं। नौ सालों में 50% से ज़्यादा स्टूडेंट्स इनहाउस पिकप और ड्रॉप फेसिलिटी पर निर्भर हैं|

Darul Islam Aided Higher Primary School, Panemangaluru,
Photo : thenewsminute.com

स्कूल के हेडमास्टर, Pakruddin B K ने बताया कि अंग्रेजी-माध्यम विद्यालयों के आने के साथ, कन्नड़-माध्यम वाले लोगों में शामिल होने वाले बच्चों की संख्या में भारी गिरावट आई| 2009-10 में, उनके स्कूल को भी इस गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ा। उन्ही दिनों उन्होनें वाहनों vehicles को introduce करने और पिकअप-ऐंड-ड्रॉप सुविधा को पेश करने का सोचा था|

Pakruddin ने कहा कि ज़्यादातर बच्चे स्थानीय हैं, जो कि स्कूल के 7 किमी के दायरे में रहते हैं। दोनों टीचर्स बच्चों को उनके घर से 8 बजे pick करते हैं और 9:15 तक सभी बच्चे स्कूल पहुँच जाते हैं| स्कूल सुबह 9:45 पर शुरू होकर शाम 4:30 बजे बंद होता है| इसके तुरंत बाद, दोनों टीचर्स बच्चों को उनके घर छोड़ते हैं|

Nooruddin G M
Photo : dailhunt.in

Pakruddin ने कहा कि इतने सालों में शायद ही कभी ऐसा हुआ है कि टीचर्स ने अपनी additional duty ना की हो| पिछले 7 सालों से दोनों गाड़ियों की maintenance और fuel का पैसा वो अपनी जेब से देते आ रहे हैं, जो कि सालाना 2 लाख है| लेकिन, पिछले 2 सालों से, वहाँ रहने वाले लोगों ने ये ख़र्चे खुद उठाने का फ़ैसला लिया है|
Nooruddin G M ने बताया कि मंगलुरु से स्कूल पहुँचने में उन्हें 22km जाना पड़ता है| वह 8 बजे स्कूल पहुँचकर, Ambassador लेकर बच्चों के घर-घर उन्हें लेने जाते हैं| वो खुश हैं क्यूंकी बच्चों को उनके साथ गाड़ी में बैठना अच्छा लगता है और वो लोग बेसब्री से उनकी कार का इंतज़ार करते हैं|

Pakruddin ने कहा, हालांकि स्कूल को सहायता तो मिलती है, salary के अलावा बाकी खर्चों के लिए केवल 12,000 रुपये साल भर में मिलते हैं| ये पैसा photocopies बनाने के लिए भी पूरा नहीं होता है| स्कूल में 6 टीचर्स हैं, जिसमें से एक अब रिटाइर्ड हो चुके हैं| 2 नये टीचर्स को रखा गया है, जिनकी salary बाकी टीचर्स मिलकर देते हैं|

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Geeta Rana

I am a Content Writer by Hobby, A Blogger by profession, as well as Owner of Nekinindia.com.

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