Azhar Maqusi ने साबित किया कि भूख का कोई मज़हब नहीं होता है
सभी लोग अच्छे भोजन के लिए अपने जीवन में कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन बहुत से बेघर और गरीब लोग हैं जो अच्छे से मिलने में जूझ रहे हैं लेकिन आशा की कुछ किरणें हैं जो भगवान हमें ऐसे लोगों की देखभाल करने के लिए Azhar Maqusi जैसे लोगों के रूप में प्रदान करते हैं|
Azhar Maqusi एक 36 साल का आदमी है, जो हैदराबाद के पुराने शहर में रहता है, अजहर 3 सालों से अपने इलाक़े में बेघर लोगों को ख़ाना खिला रहे हैं| यह सब लगभग तीन साल पहले शुरू हुआ था। वो कभी उस रास्ते से नहीं जाते थे, लेकिन टाइयर पंचर हो जाने की वज़ह से उस दिन उन्होनें पुल के नीचे बने स्टेशन से ही लोकल ट्रेन को पकड़ने का सोचा और उसी दिन उन्होनें एक विकलांग औरत को, जिसके पैर कटे थे को देखा|
उनके पिता की मृत्यु तब हो गई थी जब वह चार साल के थे और उनकी मां ने ही उन्हें और उनके भाई-बहनों को बड़ा करने के लिए काफी संघर्ष किया| इसलिए वह जानते थे कि भूखा सोना क्या होता है, उन्होनें तुरंत अपना खाना उस औरत को दे दिया|
अगले दिन Azhar की पत्नी, जो कि उनकी हर बात में उनका साथ देती है ने 15 लोगों के लिए खाना बनाया और Azhar ने उसी जगह जाकर वह खाना भूखों में बाँट दिया|
शुरू में उन्होनें भोजन के पैकेटों को distribute किया, लेकिन बाद में उन्होनें flyover के नीचे वाली जगह पर ही खाना बनाकर, भूखों को ख़िलाना शुरू कर दिया|
Azhar को लेकिन ये नहीं पता था कि ऐसे तमाम और लोग भी हैं जो भूखे हैं और इतना वो afford नहीं कर सकते| इस सबके बावजूद, उन्होंने कभी भी किसी एक भी रुपया नहीं लिया और सब कुछ अपनी जेब से ख़र्च किया| यह सब लगभग डेढ़ साल चला और फिर से किस्मत ने उन्हें दस्तक दी|
एक stranger अपना रास्ता भूल कर उनके पास आया| वह उस पुल पर काफ़ी सालों से चल रहा था, लेकिन उसे कभी भी Azhar Maqusi के इस नेक काम के बारे में पता नहीं चला| उस आदमी ने घर जाकर ये बात अपने US से आए भाई को बताई|
उसके बाद, Azhar Maqusi को अपने इन शुभचिंतकों से हर महीने 25 किलोग्राम वजन वाले 16 बोरे के चावल मिलते हैं| उनका कहना है कि इसी तरह के काम से उन्हें उनकी इच्छा पूरी करने की शक्ति मिल रही है|